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Showing posts from June, 2017

भगवान वेदव्यास की वेदना...

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"मैं दोनों हाथ उठाकर पुकार पुकार कर कह रहा हूँ परन्तु मेरी बात कोई नहीं सुनता। धर्म पालन के मार्ग पर मोक्ष तो मिलता ही है, अर्थ और काम भी सिद्ध होते हैं, फिर भी लोग उसका सेवन क्यों नहीं करते?" - महाभारत, स्वर्गारोहण पर्व, 5/62 ऋग्, यजु, साम और अथर्ववेद के रूप में वेदों का विभाग करने वाले, श्रीमद्भागवत आदि अट्ठारह पुराणों के रचयिता, श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत, ब्रह्मसूत्र और मीमांसा जैसे सनातन धर्मसर्वस्व ग्रन्थों के प्रणेता भगवान वेदव्यास के हृदय से ये मार्मिक उद्गार फूट पड़े! आज तो कलियुग है, परन्तु वेदव्यास जी ने ये बातें महाभारत काल में ही कही थीं। उस समय भी धर्म का नाम लेने वाले तो बहुत लोग थे परन्तु सबने अपने अपने अर्थ, काम और मोक्ष के संस्करण के अनुसार धर्म की परिभाषाएं गढ़ रखी थीं। जहाँ भीष्म पितामह अधर्म पर चुप्पी साधने को धर्म समझकर अपना मोक्ष साधने में लगे थे, वहीं मित्रधर्म की आड़ में कर्ण अपना अर्थ साध रहे थे। द्रोण पुत्रमोह के 'काम' में उलझे धर्म भूल रहे थे। पाण्डव भी इससे अछूते नहीं थे, अर्जुन धर्मपालन की राह में स्वजनमोह के रोड़े देख विचलित हो गए, पुनः...

पुराणों की गाथा, भाग-3, जब सूत जाति के रोमहर्षण और उग्रश्रवा ब्राह्मण बन गए

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ब्रेकिंग इंडिया पावर्स को भारत को तोड़ने के लिए हिन्दू को तोड़ना पड़ता है, आखिर हिन्दू है तो भारत है। उसी षड्यंत्र का हिस्सा है मध्यकाल में उपजे जातिवाद को प्राचीन सिद्ध करके तथाकथित नीची जातियों के मन में इस बात को लेकर वैमनस्य भरना कि जाति के आधार पर वर्ण निर्धारण करके उनपर हमेशा अत्याचार हुए। पर जैसे गर्म दूध में नींबू की धार डालते ही फट जाता है वैसे ही प्राचीन हिन्दू शास्त्रों के संगम में डुबकी लगाते ही इस झूठे षड्यंत्र का भांडा फूट जाता है।              भगवान वेदव्यास ने रोमहर्षण की रुचि देखकर उन्हें अपना शिष्य बनाकर पुराण विद्या पढ़ाई। इसके पीछे उनका उद्देश्य था कि वेदविद्या से जो वंचित हैं उन्हें पुराणों के रूप में वेदों का अर्थ प्रदान कर उनका कल्याण किया जाए। रोमहर्षण सूत जाति के थे। क्षत्रिय पिता और ब्राह्मणी माता से उत्पन्न सन्तान सूत होती है जिसका मुख्य कार्य सारथी बनना और वंश कीर्तन व स्तुति पाठ (इतिहास लेखन) होता था। अब ध्यान देने की बात है कि वर्णसंकरता के कारण सूत को वेद के अध्ययन का अधिकार नहीं था जबकि ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों को ही वेद...

आधुनिक विज्ञान से भी सिद्ध है पितर श्राद्ध की वैज्ञानिकता

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मरने के बाद यह मृतात्मा कहाँ जाती है? इसका विवरण सामवेद के ताण्ड्यमहाब्राह्मण के छान्दोग्य उपनिषद में विस्तार से मिलता है। वहाँ जीव की तीन गति बताई गईं हैं जिसमें से हम चन्द्रलोक गति की बात करेंगे जिसमें पितर का श्राद्ध आवश्यक होता है। हमारे सरे पूर्वज पितर कहलाते हैं। यह सामान्य अनुभूत बात है कि मृतक का स्थूल शरीर कहीं आता जाता नहीं है, प्राण रहित जड़ मृतदेह में कोई गति नहीं होती, और आत्मा तो विभु व्यापक है, व्यापक में भी गति नहीं होती। इसलिए पांच कर्मेन्द्रियों, पांच ज्ञानेन्द्रियों, पांच प्राण, मन और बुद्धि तत्व से बना सूक्ष्म शरीर ही शरीर से निकलकर दूसरे लोकों और जन्मों में जाता है। इन 17 तत्वों में मन ही प्रधान है और वही मन चन्द्रमा की ओर वाहिक शरीर के आकर्षण का कारण है। पर क्यों? विज्ञान का यह नियम है कि सजातीय पदार्थों में आकर्षण होता है। प्रत्येक वस्तु अपने सजातीय घन की ओर जाती है। मिट्टी का ढेला पृथ्वी पर आता है। विज्ञान में प्रत्येक mass का दूसरे mass पर आकर्षण पढ़ाया जाता है। इसी तरह मन चंद्ररूप है, 'चन्द्रमा मनसो जातः (पुरुष सूक्त)' इससे मनप्रधान सूक्ष्म शरीर का उ...