Posts

Showing posts with the label vedvyasa

आधुनिक विज्ञान की नजर में मटकों से सौ कौरवों का जन्म

Image
हमारे भारतीय ग्रन्थों में बहुत से ऐसे प्रसंग हैं जिनमें गहरी वैज्ञानिक बातें छिपी हुई हैं पर हम लोगों के उनपर शोध न करने के कारण वे सामने नहीं आ पातीं। हमारे मन का एक कोना जानता तो है कि भारत ने प्राचीन काल में ही एक बेहद समृद्ध संस्कृति का सृजन किया था जिसमें विज्ञान भी विकास के चरम पर था और आध्यात्मिक ज्ञान भी अपने शिखर पर था। पर हम उसके बारे में ठोस जानकारी की ओर ध्यान नहीं देते, जो हमारी एक कमजोरी कही जा सकती है। आज हम महाभारत के ऐसे ही एक प्रसंग की बात करेंगे जिसमें भारतीय ऋषियों की गहरी वैज्ञानिक दृष्टि के दर्शन होते हैं। गांधारी के पुत्रों के जन्म की कथा। कथा कुछ इस तरह से है कि महर्षि वेदव्यास ने, माता गांधारी को सौ पुत्र होने का वरदान दिया था। लेकिन जब गान्धारी का गर्भ-धारणकाल लंबा होता चला गया तो दुखी होकर उन्होंने गर्भ पर ज़ोर ज़ोर से हाथ मारे, जिसके कारण उनको असमय प्रसव हुआ और एक अपरिपक्व मांसपिण्ड निकला। इसपर दुखी माता गांधारी ने महर्षि वेदव्यास जी को उनके वरदान की याद दिलाई। गांधारी की प्रार्थना पर वेदव्यास जी ने मांसपिण्ड पर जल छिड़का, एवं उसे सौ भागों में विभक्त कर ...

भगवान वेदव्यास की वेदना...

Image
"मैं दोनों हाथ उठाकर पुकार पुकार कर कह रहा हूँ परन्तु मेरी बात कोई नहीं सुनता। धर्म पालन के मार्ग पर मोक्ष तो मिलता ही है, अर्थ और काम भी सिद्ध होते हैं, फिर भी लोग उसका सेवन क्यों नहीं करते?" - महाभारत, स्वर्गारोहण पर्व, 5/62 ऋग्, यजु, साम और अथर्ववेद के रूप में वेदों का विभाग करने वाले, श्रीमद्भागवत आदि अट्ठारह पुराणों के रचयिता, श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत, ब्रह्मसूत्र और मीमांसा जैसे सनातन धर्मसर्वस्व ग्रन्थों के प्रणेता भगवान वेदव्यास के हृदय से ये मार्मिक उद्गार फूट पड़े! आज तो कलियुग है, परन्तु वेदव्यास जी ने ये बातें महाभारत काल में ही कही थीं। उस समय भी धर्म का नाम लेने वाले तो बहुत लोग थे परन्तु सबने अपने अपने अर्थ, काम और मोक्ष के संस्करण के अनुसार धर्म की परिभाषाएं गढ़ रखी थीं। जहाँ भीष्म पितामह अधर्म पर चुप्पी साधने को धर्म समझकर अपना मोक्ष साधने में लगे थे, वहीं मित्रधर्म की आड़ में कर्ण अपना अर्थ साध रहे थे। द्रोण पुत्रमोह के 'काम' में उलझे धर्म भूल रहे थे। पाण्डव भी इससे अछूते नहीं थे, अर्जुन धर्मपालन की राह में स्वजनमोह के रोड़े देख विचलित हो गए, पुनः...

पुराणों की गाथा, भाग-3, जब सूत जाति के रोमहर्षण और उग्रश्रवा ब्राह्मण बन गए

Image
ब्रेकिंग इंडिया पावर्स को भारत को तोड़ने के लिए हिन्दू को तोड़ना पड़ता है, आखिर हिन्दू है तो भारत है। उसी षड्यंत्र का हिस्सा है मध्यकाल में उपजे जातिवाद को प्राचीन सिद्ध करके तथाकथित नीची जातियों के मन में इस बात को लेकर वैमनस्य भरना कि जाति के आधार पर वर्ण निर्धारण करके उनपर हमेशा अत्याचार हुए। पर जैसे गर्म दूध में नींबू की धार डालते ही फट जाता है वैसे ही प्राचीन हिन्दू शास्त्रों के संगम में डुबकी लगाते ही इस झूठे षड्यंत्र का भांडा फूट जाता है।              भगवान वेदव्यास ने रोमहर्षण की रुचि देखकर उन्हें अपना शिष्य बनाकर पुराण विद्या पढ़ाई। इसके पीछे उनका उद्देश्य था कि वेदविद्या से जो वंचित हैं उन्हें पुराणों के रूप में वेदों का अर्थ प्रदान कर उनका कल्याण किया जाए। रोमहर्षण सूत जाति के थे। क्षत्रिय पिता और ब्राह्मणी माता से उत्पन्न सन्तान सूत होती है जिसका मुख्य कार्य सारथी बनना और वंश कीर्तन व स्तुति पाठ (इतिहास लेखन) होता था। अब ध्यान देने की बात है कि वर्णसंकरता के कारण सूत को वेद के अध्ययन का अधिकार नहीं था जबकि ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों को ही वेद...

पुराणों की गाथा, भाग-2, कौन हैं वेदव्यास?

Image
हिन्दूओं में एक बहुत बड़ा दुष्प्रचार फैलाया गया है कि पुराण नवीन ग्रन्थ हैं। पुराण नाम से स्पष्ट है कि इसका सम्बन्ध पुराना से है। किसी संस्कृति को खत्म करने के लिए उसके इतिहास को मिटाना पुरानी परम्परा रही है, पुराणों का अपमान करना उसी रीति का अनुकरण मात्र है। पिछली पोस्ट में बताया था कि कैसे पुराण सनातन धर्म के वो खम्भे हैं जिनपर धर्म टिका हुआ है, इसलिए उनके महत्व पर यहाँ लिखना अब आवश्यक नहीं है। अतः पुराणों को नवीन, झूठ का पुलिंदा, मनगढ़ंत कहानियों का पिटारा कहना हिन्दू धर्म की इमारत के खम्भों को तोड़ने के बराबर है। जिन्होंने इस लेख का पहला भाग नहीं पढा है वे इससे पहले का पोस्ट पहले पढ़ लें, इस श्रृंखला के सभी  लेखों के लिंक अंत में दिए गये हैं|        विगत लेख में लिखा था कि ब्रह्मा के स्मरण में वेद से भी पहले पुराण आते हैं इससे स्पष्ट है कि पुराण अनादि हैं। परन्तु कैसे? तो पुराण एक विद्या का नाम है, जैसे कि व्याकरण एक विद्या है। आज संस्कृत व्याकरण का मुख्य ग्रन्थ पाणिनि का अष्टाध्यायी है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि उसके पहले व्याकरण नहीं था। उसके पहले भी व्या...

पुराणों की गाथा, भाग-1, क्यों महत्वपूर्ण हैं पुराण?

Image
फूलपत्तियों और फलों से लदी हुई बहुत सी टहनियों वाला हिन्दू धर्म का वटवृक्ष वेदों की गहराई तक फैली जड़ों पर टिका हुआ है, पर उसका तना क्या है? उसका तना है 'पुराण'।  अगर हिन्दू धर्म को एक बहुमंजिला भव्य इमारत कहा जाए तो वेद उसकी नींव कहा जाएगा और 'पुराण' उसके खम्भे जिसपर उसकी छतें टिकी हुई हैं।  आज संसार में जितना भी हिन्दू धर्म बचा हुआ है, सब पुराणों पर अवलम्बित है, पुराण को इसमें से हटा दें तो सनातन वटवृक्ष औंधे मुंह गिर पड़ेगा और सनातन धर्म का महल जमींदोज हो जाएगा।           भारतीय ही नहीं विश्व इतिहास के ग्रन्थ भी संसार में पुराण ही हैं। पुराणों को छोड़कर विश्व इतिहास की कोई श्रृंखला नहीं बैठ सकती। 'पुराण' नाम ही स्पष्ट है कि इसका सम्बन्ध 'पुराना' से है। भारतीय इतिहास के मुख्य ग्रन्थ हैं 'रामायण' और 'महाभारत' पर इन दो ग्रन्थों में केवल उस काल का नहीं पीछे का भी बहुत सा इतिहास है। रामायण और पूरे महाभारत में अनेक राजवंशों और ऋषियों की परम्पराओं का इतिहास बिखरा हुआ है। 18 पुराणों में से एक 'हरिवंश पुराण' महाभारत का ही अंतिम पर्व है...

समस्त धर्मों के पर्यावसान श्री कृष्ण

Image
द्रोणाचार्य सरीखे शास्त्रज्ञ गुरु भी धर्म का तत्व नहीं समझ पाए। भीष्म पितामह जैसे धर्म सम्राट को भी धर्म का तत्व शर शैय्या पर लेटने से पहले समझ न आया। यहाँ तक कि धर्म अधर्म के नाम पर दो फाड़ हुए राजाओं में धर्म पक्ष के अर्जुन भी धर्म के नाम पर युद्ध छोड़ भिखारी बनने को तैयार हैं। युद्ध जीतने के पश्चात भी धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म के सामने नेत्रों में अश्रु लिए धर्म का तत्व जानने के लिए चरणानुगत हो रहे हैं। वहीं समस्त धर्म-अधर्म की उलझनों से घिरे वातावरण में, भ्रमित पात्रों के बीच, गायें चराने वाला ग्वाला धर्म का साक्षात् स्वरूप बना हुआ है। सारे शंकित पात्रों के प्रश्नों का समाधान आखिर में वही कर रहा है। उसके उपदेशों से जहाँ भिखारी बनने की इच्छा वाले अर्जुन रण में प्रलय मचाने को उतावले हो रहे हैं, वहीं अजेयानुजेय भीष्म अपने प्राणों को स्वयं थाली में सजाए खड़े हैं। जहाँ बड़े बड़े विद्वानों की बुद्धि भी भ्रमित हो अधर्म को धर्म मान लेती है वहीं श्री कृष्ण का हर एक कार्य मानो धर्म की गुत्थियों की गांठें खोल रहा है।              धर्म सदा देश-काल-परिस्थित...