Posts

Showing posts with the label prashnopanishad

प्रश्नोपनिषद के गुरु और शिष्य की अनकही बातें

Image
प्रश्नोपनिषद का प्रारम्भ इस प्रकार होता है कि सुकेशा, शिविकुमार, सत्यकाम, सौर्यायणि, कौसल्य, भार्गव और कबन्धी, यह ब्रह्मनिष्ठ ऋषि परब्रह्म की खोज करते हुए कि, "वह ब्रह्म क्या है?" इत्यादि जिज्ञासा लेकर उसकी खोज में आचार्य पिप्पलाद के पास हाथों में समिधा लेकर इस भावना से जाते हैं कि आचार्य भगवान हमें सब कुछ बतला देंगे। तब ऋषि पिप्पलाद ने अपनी शरण आए जिज्ञासु ऋषियों से कहा कि पहले से ही तपस्वी होने पर भी आप ब्रह्मचर्य, इन्द्रियसंयम, श्रद्धा, आस्तिकता तथा गुरुसेवा करते हुए एक वर्ष तक गुरुकुल में निवास करिए ततपश्चात आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विषय में प्रश्न करना, यदि मैं उस विषय को जानता हुआ तो आपकी पूछी सभी बात बतला दूंगा। इसके एक वर्ष बाद जिज्ञासु ऋषि आचार्य पिप्पलाद से प्रश्न करना शुरू करते हैं और प्रश्नोपनिषद का वास्तविक उद्घाटन होता है।             उपनिषद के आरम्भ की यह घटना यद्यपि छोटी है परंतु इसके अंदर भाव बड़ा गहरा है। सबसे पहले तो सभी जिज्ञासु ऋषि बताए गए हैं, प्रश्न उठता है ऋषि कोटि के व्यक्ति को भी जिज्ञासा? ब्रह्मनिष्ठ ऋषियों को ब्रह्म के विष...