Posts

Showing posts with the label puran

पुराणों की गाथा, भाग-3, जब सूत जाति के रोमहर्षण और उग्रश्रवा ब्राह्मण बन गए

Image
ब्रेकिंग इंडिया पावर्स को भारत को तोड़ने के लिए हिन्दू को तोड़ना पड़ता है, आखिर हिन्दू है तो भारत है। उसी षड्यंत्र का हिस्सा है मध्यकाल में उपजे जातिवाद को प्राचीन सिद्ध करके तथाकथित नीची जातियों के मन में इस बात को लेकर वैमनस्य भरना कि जाति के आधार पर वर्ण निर्धारण करके उनपर हमेशा अत्याचार हुए। पर जैसे गर्म दूध में नींबू की धार डालते ही फट जाता है वैसे ही प्राचीन हिन्दू शास्त्रों के संगम में डुबकी लगाते ही इस झूठे षड्यंत्र का भांडा फूट जाता है।              भगवान वेदव्यास ने रोमहर्षण की रुचि देखकर उन्हें अपना शिष्य बनाकर पुराण विद्या पढ़ाई। इसके पीछे उनका उद्देश्य था कि वेदविद्या से जो वंचित हैं उन्हें पुराणों के रूप में वेदों का अर्थ प्रदान कर उनका कल्याण किया जाए। रोमहर्षण सूत जाति के थे। क्षत्रिय पिता और ब्राह्मणी माता से उत्पन्न सन्तान सूत होती है जिसका मुख्य कार्य सारथी बनना और वंश कीर्तन व स्तुति पाठ (इतिहास लेखन) होता था। अब ध्यान देने की बात है कि वर्णसंकरता के कारण सूत को वेद के अध्ययन का अधिकार नहीं था जबकि ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों को ही वेद...

पुराणों की गाथा, भाग-2, कौन हैं वेदव्यास?

Image
हिन्दूओं में एक बहुत बड़ा दुष्प्रचार फैलाया गया है कि पुराण नवीन ग्रन्थ हैं। पुराण नाम से स्पष्ट है कि इसका सम्बन्ध पुराना से है। किसी संस्कृति को खत्म करने के लिए उसके इतिहास को मिटाना पुरानी परम्परा रही है, पुराणों का अपमान करना उसी रीति का अनुकरण मात्र है। पिछली पोस्ट में बताया था कि कैसे पुराण सनातन धर्म के वो खम्भे हैं जिनपर धर्म टिका हुआ है, इसलिए उनके महत्व पर यहाँ लिखना अब आवश्यक नहीं है। अतः पुराणों को नवीन, झूठ का पुलिंदा, मनगढ़ंत कहानियों का पिटारा कहना हिन्दू धर्म की इमारत के खम्भों को तोड़ने के बराबर है। जिन्होंने इस लेख का पहला भाग नहीं पढा है वे इससे पहले का पोस्ट पहले पढ़ लें, इस श्रृंखला के सभी  लेखों के लिंक अंत में दिए गये हैं|        विगत लेख में लिखा था कि ब्रह्मा के स्मरण में वेद से भी पहले पुराण आते हैं इससे स्पष्ट है कि पुराण अनादि हैं। परन्तु कैसे? तो पुराण एक विद्या का नाम है, जैसे कि व्याकरण एक विद्या है। आज संस्कृत व्याकरण का मुख्य ग्रन्थ पाणिनि का अष्टाध्यायी है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि उसके पहले व्याकरण नहीं था। उसके पहले भी व्या...

पुराणों की गाथा, भाग-1, क्यों महत्वपूर्ण हैं पुराण?

Image
फूलपत्तियों और फलों से लदी हुई बहुत सी टहनियों वाला हिन्दू धर्म का वटवृक्ष वेदों की गहराई तक फैली जड़ों पर टिका हुआ है, पर उसका तना क्या है? उसका तना है 'पुराण'।  अगर हिन्दू धर्म को एक बहुमंजिला भव्य इमारत कहा जाए तो वेद उसकी नींव कहा जाएगा और 'पुराण' उसके खम्भे जिसपर उसकी छतें टिकी हुई हैं।  आज संसार में जितना भी हिन्दू धर्म बचा हुआ है, सब पुराणों पर अवलम्बित है, पुराण को इसमें से हटा दें तो सनातन वटवृक्ष औंधे मुंह गिर पड़ेगा और सनातन धर्म का महल जमींदोज हो जाएगा।           भारतीय ही नहीं विश्व इतिहास के ग्रन्थ भी संसार में पुराण ही हैं। पुराणों को छोड़कर विश्व इतिहास की कोई श्रृंखला नहीं बैठ सकती। 'पुराण' नाम ही स्पष्ट है कि इसका सम्बन्ध 'पुराना' से है। भारतीय इतिहास के मुख्य ग्रन्थ हैं 'रामायण' और 'महाभारत' पर इन दो ग्रन्थों में केवल उस काल का नहीं पीछे का भी बहुत सा इतिहास है। रामायण और पूरे महाभारत में अनेक राजवंशों और ऋषियों की परम्पराओं का इतिहास बिखरा हुआ है। 18 पुराणों में से एक 'हरिवंश पुराण' महाभारत का ही अंतिम पर्व है...