वेदमूर्ति पण्डित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी का 150वां जन्मवर्ष

वेदविद्या का अनुशीलन करने के पक्षपाती लोगों में पण्डितजी का नाम ही पर्याप्त परिचय है। वैदिक साहित्य और संस्कृत को जनसामान्य की पहुंच में लाने का ऐसा महनीय कार्य उन्होंने किया था जैसा करने की इच्छा कभी दयानन्द स्वामी ने की थी। स्वामी दयानन्द ने हिन्दी को वेदभाष्य की भाषा बनाकर वेदविस्मृत लोगों में वेदों के प्रति एक गम्भीर आकर्षण पैदा कर दिया था परन्तु दो ही वेदों का भाष्य वे कर सके। इस कार्य को उन्हीं की सी तितीक्षा वाले उनके पट्ट शिष्य श्रीपाद सातवलेकर ने आगे बढ़ाया और चारों वेदों का 'सुबोध हिन्दी भाष्य' तैयार कर हिन्दू समाज में इसे सुगम्य बना दिया। आर्यसमाज की आधारभूत सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका जैसी पुस्तकों का मराठी में भाष्य करने वाले पण्डित सातवलेकर तब भी धारा में बंधे नहीं रहे, स्वामी दयानन्द की सी परिशोधन की दृष्टि लेकर उनके सिद्धांतों में भी परिशोधन से पीछे नहीं हटे और अकेले ही "स्वाध्याय मण्डल" की स्थापना करके वेदभाष्य के पुरुषार्थ में लग गए। लोकमान्य तिलक जैसे मनीषी के प्रभाव से कांग्रेस से जुड़े और स्वदेशी पर व्याख्यान देकर स्वाधीनता के यज्ञ म...