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कैसे बचाया था गोस्वामी तुलसीदास जी ने हिन्दूओं को मुसलमान बनने से?

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गोस्वामी तुलसीदास जी के नाम से हमें सबसे पहले रामचरितमानस की याद आती है। वह अलौकिक काव्य जिसे गाकर कई सदियों से समूचे उत्तर पूर्वी भारत के करोड़ों लोग अपने इष्ट श्रीराम को याद करते आये हैं। हिंदुओं के करोड़ों घरों में एक भी घर ऐसा नहीं मिल सकता जिसमें यह ग्रन्थ न हो। श्री राम और हनुमानजी के भक्तों के लिए तो रामचरितमानस और उसका सुंदरकांड प्राण सर्वस्व ही है। पर श्रीराम की भक्ति के अलावा भी रामचरितमानस का एक बहुत विशिष्ट योगदान भारत के इतिहास में रहा है, जिसपर कम ही इतिहासकारों ने नजर डाली है। प्रभु श्रीराम की भक्ति के ही नहीं बल्कि एक बहुत ही बड़े उद्देश्य के लिए गोस्वामी जी ने रामचरितमानस की रचना की थी। आज हम उस महान उद्देश्य को देखेंगे... गोस्वामी तुलसीदास जी के वक्त भारतवर्ष मुगल बादशाहों के अधीन था। लगभग तीन सौ वर्षों के मुस्लिम शासन से त्रस्त भारत में गुरुकुलों का बहुत ह्रास हो चूका था। लूट खसोट और रोज के अत्याचारों से अपने प्राण बचाने की फुर्सत ही हिन्दुओं को नहीं मिलती थी, ऐसे में धर्म ग्रन्थों का अध्ययन बहुत कठिन हो गया था। ग्रामीण शोषित अनाथ हिन्दू जनता संस्कृत ज्ञान न ह...

श्री राम का सत्य सर्वप्रिय धर्म स्वरूप..

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यदि वेदव्यास, आद्य शंकराचार्य, स्वामी दयानन्द आदि वेदज्ञ ऋषि ज्ञान की किसी परोक्ष संस्कृति के किनारे हैं, यदि भगवान श्रीकृष्णचन्द्र अथाह प्रेम और गहन आध्यात्म की किसी अपूर्व धवल जाह्नवी के तट पर हैं, तो श्री रामचन्द्र धर्म, कर्म और करुणा की त्रिवेणी के हृदयंगम प्रयाग-संगम पर खेल रहे हैं।                अनन्त ब्रह्माण्डनायक ने संसार नाटक में श्रीराम के रूप में अपूर्व नायक बनकर सारे धर्म को स्वयं में समेट लिया। यदि सूर्य यथासमय उदित-अस्त होने का, चन्द्र प्रतिपक्ष घटने-बढ़ने का, ऋतुएं क्रम से आविर्भूत होने का अपना धर्म निभाती हैं तो वह श्रीराम के चरित्र से ही उन्होंने ग्रहण किया। संसार के इतिहास का सारा का सारा धार्मिक व्याख्यान भगवान श्री राम के जीवन में ही अन्तर्निहित है।                  धर्म क्या है? उसका स्वरूप क्या है? मनुष्यों से लेकर ऋषि भी इस सम्बन्ध में मोहित रहते हैं, इसलिए भगवान विष्णु ने जब राम रूप में धर्मावतार लिया, तो धर्म के मूल वेदों ने भी वाल्मीकि के माध्यम से रामायण के रूप में अवतार...