कैसे बचाया था गोस्वामी तुलसीदास जी ने हिन्दूओं को मुसलमान बनने से?
गोस्वामी तुलसीदास जी के नाम से हमें सबसे पहले रामचरितमानस की याद आती है। वह अलौकिक काव्य जिसे गाकर कई सदियों से समूचे उत्तर पूर्वी भारत के करोड़ों लोग अपने इष्ट श्रीराम को याद करते आये हैं। हिंदुओं के करोड़ों घरों में एक भी घर ऐसा नहीं मिल सकता जिसमें यह ग्रन्थ न हो। श्री राम और हनुमानजी के भक्तों के लिए तो रामचरितमानस और उसका सुंदरकांड प्राण सर्वस्व ही है। पर श्रीराम की भक्ति के अलावा भी रामचरितमानस का एक बहुत विशिष्ट योगदान भारत के इतिहास में रहा है, जिसपर कम ही इतिहासकारों ने नजर डाली है। प्रभु श्रीराम की भक्ति के ही नहीं बल्कि एक बहुत ही बड़े उद्देश्य के लिए गोस्वामी जी ने रामचरितमानस की रचना की थी। आज हम उस महान उद्देश्य को देखेंगे...
हिन्दुओं की ऐसी दयनीय अवस्था देखकर गोस्वामी तुलसीदास जी भी विचलित हो उठे और उन्होंने श्रीराम के जीवन के माध्यम से हिन्दुओं को पुनः धर्म की शिक्षा देने की ठानी। संस्कृत के प्रकांड पंडित होने पर भी धर्मरक्षार्थ जन जन की बोली जाने वाली सरल अवधि भाषा को उन्होंने इस कार्य हेतु चुना। तुलसीदास जी ने धर्म के जीवंत स्वरूप श्री राम के जीवन को लोक लुभावनी भाषा में लिखा और लोगों को रामचरितमानस के माध्यम से सनातन धर्म की शिक्षाएं दीं। वेदों की अवतार वाल्मीकि रामायण को ही आधार बनाकर उन्होंने रामचरितमानस की रचना की। मानस के माध्यम से हिन्दूओं में श्रीराम के नाम पर एकता आई। राम उनका इष्ट है, राम उनका प्राण है, राम ही उन अनाथों का नाथ है, वे अब राम को नहीं छोड़ेंगे, वे अब राम के हैं और राम उनका।
- मुदित मित्तल
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