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Showing posts from August, 2016

समस्त धर्मों के पर्यावसान श्री कृष्ण

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द्रोणाचार्य सरीखे शास्त्रज्ञ गुरु भी धर्म का तत्व नहीं समझ पाए। भीष्म पितामह जैसे धर्म सम्राट को भी धर्म का तत्व शर शैय्या पर लेटने से पहले समझ न आया। यहाँ तक कि धर्म अधर्म के नाम पर दो फाड़ हुए राजाओं में धर्म पक्ष के अर्जुन भी धर्म के नाम पर युद्ध छोड़ भिखारी बनने को तैयार हैं। युद्ध जीतने के पश्चात भी धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म के सामने नेत्रों में अश्रु लिए धर्म का तत्व जानने के लिए चरणानुगत हो रहे हैं। वहीं समस्त धर्म-अधर्म की उलझनों से घिरे वातावरण में, भ्रमित पात्रों के बीच, गायें चराने वाला ग्वाला धर्म का साक्षात् स्वरूप बना हुआ है। सारे शंकित पात्रों के प्रश्नों का समाधान आखिर में वही कर रहा है। उसके उपदेशों से जहाँ भिखारी बनने की इच्छा वाले अर्जुन रण में प्रलय मचाने को उतावले हो रहे हैं, वहीं अजेयानुजेय भीष्म अपने प्राणों को स्वयं थाली में सजाए खड़े हैं। जहाँ बड़े बड़े विद्वानों की बुद्धि भी भ्रमित हो अधर्म को धर्म मान लेती है वहीं श्री कृष्ण का हर एक कार्य मानो धर्म की गुत्थियों की गांठें खोल रहा है।              धर्म सदा देश-काल-परिस्थित...

नहीं उतारा मैंने अपना जनेऊ

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नहीं उतारा मैंने अपना जनेऊ इमाम ने बैठाए रखा चार दिन चार रात मैंने नहीं उतारा अपना जनेऊ छह लोगों का मेरा घर आलम्ब है मुझपर ही भूखे रहे घर पर मगर मैंने नहीं उतारा अपना जनेऊ मेरे चौसठ साल के बापू ने ढोयीं अपनी वृत्ताकार पीठ पर उस दिन लकड़ियाँ मगर मैंने नहीं उतारा अपना जनेऊ काफ़िर कहकर बिठाए रखा चार दिन चार रात कहा, 'अपने बाप को गाली दे' उनने चार गाली दीं 'हिंदी में लिखी अरबी पढ़ कुत्ते' पढ़ा लिया फातिहा 'उतार अपनी धोती' नंगा किया। माफ़ करना मेरे हमधरम भाइयों मैंने सब किया जो इमाम ने कराया मेरा भूखा बूढा बाप मेरे दुधमुंहे बच्चों को पाल रहा था घर पर इमाम ने माँगा फिर मेरा जनेऊ मैं उसके मुंह पर थूक आया भागा, पीछे से मारी उसने छुरी मेरी पीठ पर मगर मैंने उतारा नहीं अपना जनेऊ - मुदित मित्तल