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Showing posts from October, 2016

वैष्णवों के भरत..

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रामायण के पात्रों में भरत सर्वोत्तम हैं। रामायण का अति सुन्दर खण्ड 'चित्रकूट में राम भरत मिलाप' है। यह एक बड़ी महत्वपूर्ण घटना है। दुनिया में चाहे कितना ही पाप चलता हो, एकाध ऐसे होते हैं, जिनसे धर्म की रक्षा होती रहती है। लोभ, छल, कपट आदि से पूरित इस दुनिया में कुछ आदमी ऐसे भी होते हैं, जिनसे संसार में परस्पर विश्वास, धैर्य और प्रेम का स्त्रोत भी प्रवाहित होता है, जिनसे लोगों को धर्म मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती रहती है। धर्म आखिर कभी नहीं मिट सकता। रामायण की कथा में भरत का  चरित्र ही हमारे उद्धार के लिए पर्याप्त है। लोग रामावतार की वास्तविकता पर विश्वास करें या न करें, भले श्री राम के चरित को ऋषि की कल्पना समझते रहें पर रामायण के सृष्टिकर्ता महर्षि वाल्मीकि सदैव पूजनीय हैं इसमें कोई सन्देह नहीं। भरत जैसे पात्र की सृष्टि करने के लिए कितना ज्ञान, कितनी भक्ति और कितना वैराग्य चाहिए। हमें भरत चरित्र को पढ़कर इतना जो आनंद होता है, उसका यही कारण हो सकता है कि हम सब के अंतः करणों में ज्ञान और भक्ति का भाव किसी कोने में अवश्य है, यद्यपि हमें उसका पता नहीं-- अन्यथा हम पशुओं स...

बड़े विशाल अन्तरिक्ष में मैं जाता हूँ...

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हमें अपने आपको एक विचारधारा में नहीं बांध लेना चाहिए, किसी मत-पंथ में नहीं बांध लेना चाहिए। हमारे मन को उड़ने की जगह देनी चाहिए, एक छेद तो रखना ही चाहिए जहां से नई बातें दिमाग में आ सकें, पुरानी बाहर निकल सकें। एक ही मान्यता में, एक सम्प्रदाय में, एक पंथ में, एक विचारधारा में मन को कैद करने से उसकी रचनात्मकता, सृजनात्मकता, उत्पादकता, नवीनता का गला घुट जाता है, कूपमण्डूक नहीं बनना चाहिए।                 पोखरे में भरा पानी खुदको ही महान समझता है, पर उसमें से एक नाली नदी में जोड़ दो, नदी में पहुंचकर  उसे भान होगा कि कैसी संकीर्णता में जी रहा था मैं, कितना अविकसित था, यहाँ नए जीव, नई वनस्पतियां उसे समृद्धतर कर देती हैं, फिर जब वह पहुंचता है समुद्र में तब पुनः उसकी सीमाएं खंडित हो जाती हैं, पुनः नई व्यापकता पाता है, फिर से हज़ारों नई चीजों को देख समझकर अपनी पुरानी दीनता का शोक करता है, पुराने अभिमान चकनाचूर हो जाते हैं।                योग की भाषा में हमारे मन में कोई विचार चित्त में कोई घर्षण पैदा कर...

हर चीज का मतलब निकालना बेमानी

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दो-तीन दिन पहले मैं जलियांवाला बाग़ गया था, हम सबके लिए वह शोक की भूमि है, वहाँ के बारे में अधिक लिखना नहीं चाहता पर एक बात का ज़िक्र करना चाहता हूँ। जलियांवाला बाग़ में फायरिंग के दौरान बहुत से लोग गोलियों से बचने के लिए वहाँ स्थित एक कुंए में कूद गए थे, सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुंए से 120 शव निकाले गए थे, जिनमें बच्चे भी शामिल थे। वह कुंआ शहीद कुँआ कहलाता है। उस शहीद कुँए की चारों ओर फेंसिंग की गई है, परन्तु नीचे झाँक सकते हैं, नीचे झाँकने पर तारे से चमचमाते दीखते हैं। असल में लोग कुँए में सिक्के और नोट आदि डाल जाते हैं। कुँए में हज़ारों सिक्के व नोट थे, जिनमें 100-500 के नोट भी थे। वह कुँआ काफी गहरा है और मैं नहीं समझता कभी भी उस स्थाई फेंसिंग को हटाकर कुँए से यह राशि निकाली जाएगी, फिर क्यों लोग यह सब कुँए में फेंकते हैं। मेरे दोस्तों ने भी यह पूछा और इसे बेतुका बताया, पर मुझे कुछ और दिख रहा था, मैंने इतना ही कहा, हर बात का मतलब निकालने का कोई मतलब नहीं है, लोगों ने यह जो सिक्के डाले हैं, सुखद बात है, सबको पता है कि इन पैसों का कुछ नहीं होना फिर भी लोग डालते हैं, वह केवल भावना के क...