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Showing posts from July, 2017

कोर्ट के भी पहले से हिन्दू क्यों मानते हैं गंगा-यमुना को जीवित

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कुछ महीने पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने गंगा नदी को देश की पहली जीवित इकाई के रूप में मान्यता दी थीऔर गंगा-यमुना को जीवित मनुष्य के समान अधिकार देने का फैसला किया था। इस फैसले के बाद भारत की दोनों महत्वपूर्ण नदियों गंगा और यमुना को संविधान की ओर से नागरिकों को मुहैया कराए गए सभी अधिकार दिए गए थे। गौरतलब है कि न्यूजीलैंड ने भी अपनी वांगानुई नदी को एक जीवित संस्था के रूप में मान्यता दी हुई है। यह बहुत ही सराहनीय कदम था कि दोनों पवित्र नदियों को कोर्ट ने जीवित मानकर मनुष्यों के सभी संवैधानिक अधिकार दिए पर यदि हम न्यूजीलैंड से पहले ऐसा करते तो बात ही अलग होती। क्योंकि भारतीय संस्कृति तो गंगा यमुना को माता कहकर मनुष्य और उससे भी ऊपर देवता की कोटि में रखती है, खैर अदालत ने यह फैसला देकर वैदिक संस्कृति का मान बढ़ाया था। परन्तु खेद है कि हिंदुत्व और संस्कृति की रक्षा करने का दंभ भरने वाली उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने ही इस फैसले के विरुद्ध कोर्ट में याचिका दायर की क्योंकि हिंदुत्व एक चुनाव जीतने का साधन है साध्य नहीं है। खैर हम बात करते हैं कि कैसे वैदिक दृष्टि में गंगा और यमुना जीव...

कैसे बचाया था गोस्वामी तुलसीदास जी ने हिन्दूओं को मुसलमान बनने से?

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गोस्वामी तुलसीदास जी के नाम से हमें सबसे पहले रामचरितमानस की याद आती है। वह अलौकिक काव्य जिसे गाकर कई सदियों से समूचे उत्तर पूर्वी भारत के करोड़ों लोग अपने इष्ट श्रीराम को याद करते आये हैं। हिंदुओं के करोड़ों घरों में एक भी घर ऐसा नहीं मिल सकता जिसमें यह ग्रन्थ न हो। श्री राम और हनुमानजी के भक्तों के लिए तो रामचरितमानस और उसका सुंदरकांड प्राण सर्वस्व ही है। पर श्रीराम की भक्ति के अलावा भी रामचरितमानस का एक बहुत विशिष्ट योगदान भारत के इतिहास में रहा है, जिसपर कम ही इतिहासकारों ने नजर डाली है। प्रभु श्रीराम की भक्ति के ही नहीं बल्कि एक बहुत ही बड़े उद्देश्य के लिए गोस्वामी जी ने रामचरितमानस की रचना की थी। आज हम उस महान उद्देश्य को देखेंगे... गोस्वामी तुलसीदास जी के वक्त भारतवर्ष मुगल बादशाहों के अधीन था। लगभग तीन सौ वर्षों के मुस्लिम शासन से त्रस्त भारत में गुरुकुलों का बहुत ह्रास हो चूका था। लूट खसोट और रोज के अत्याचारों से अपने प्राण बचाने की फुर्सत ही हिन्दुओं को नहीं मिलती थी, ऐसे में धर्म ग्रन्थों का अध्ययन बहुत कठिन हो गया था। ग्रामीण शोषित अनाथ हिन्दू जनता संस्कृत ज्ञान न ह...

कौन थे धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज? जानिए 8 पंक्तियों में

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कुछ बुद्धिमान जन भगवान हरि(विष्णु) का भजन करते हैं, और कुछ दूसरे संसार तापहारी हर(शंकर) की सेवा करते हैं। किन्तु धर्म की हानि से खिन्न मनवाले हम लोगों की उपासना का पात्र तो हरि और हर का वह अनुपम अद्वैत है, जिसे हमने अपनी आंखों से देखा है। (श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज के संन्यास का नाम श्रीहरिहरानन्द सरस्वती है) ||१|| "क्या उदात्त लोककल्याकारिणी राजनीति में प्रवीण 'विष्णुगुप्त'-- आचार्य चाणक्य, या समस्त शास्त्रों में दक्ष देवगुरु 'बृहस्पति' हैं, या फिर श्रीप्रभु का गुणगान करने स े धन्य हुए 'शुकदेवजी' ही हैं?" जिनके बारे में लोग ऐसा सन्देह किया करते थे -- वे स्वामी करपात्रीजी महाराज वंदना के पात्र हैं ||२|| जिनकी जिह्वा पर नवरसमयी सरस्वती निवास करती थी, लेखों के रूप में जिनकी महान यशोराशि की लेखाएँ आज भी शोभा पा रही हैं, और जिनके हृदय में कमल के मध्यभाग सरीखी मृदुलता थी, वे सर्वभूतहृदय संयमी स्वामी करपात्रीजी किसके स्मरणीय नहीं हैं? ||३|| वंदनीय हैं वे स्वामी करपात्रीजी महाराज जिन मनीषी ने अनेकानेक धर्मसंस्थाओं की स्थापना की, जिन्होंने रामायण...

आधुनिक विज्ञान की नजर में मटकों से सौ कौरवों का जन्म

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हमारे भारतीय ग्रन्थों में बहुत से ऐसे प्रसंग हैं जिनमें गहरी वैज्ञानिक बातें छिपी हुई हैं पर हम लोगों के उनपर शोध न करने के कारण वे सामने नहीं आ पातीं। हमारे मन का एक कोना जानता तो है कि भारत ने प्राचीन काल में ही एक बेहद समृद्ध संस्कृति का सृजन किया था जिसमें विज्ञान भी विकास के चरम पर था और आध्यात्मिक ज्ञान भी अपने शिखर पर था। पर हम उसके बारे में ठोस जानकारी की ओर ध्यान नहीं देते, जो हमारी एक कमजोरी कही जा सकती है। आज हम महाभारत के ऐसे ही एक प्रसंग की बात करेंगे जिसमें भारतीय ऋषियों की गहरी वैज्ञानिक दृष्टि के दर्शन होते हैं। गांधारी के पुत्रों के जन्म की कथा। कथा कुछ इस तरह से है कि महर्षि वेदव्यास ने, माता गांधारी को सौ पुत्र होने का वरदान दिया था। लेकिन जब गान्धारी का गर्भ-धारणकाल लंबा होता चला गया तो दुखी होकर उन्होंने गर्भ पर ज़ोर ज़ोर से हाथ मारे, जिसके कारण उनको असमय प्रसव हुआ और एक अपरिपक्व मांसपिण्ड निकला। इसपर दुखी माता गांधारी ने महर्षि वेदव्यास जी को उनके वरदान की याद दिलाई। गांधारी की प्रार्थना पर वेदव्यास जी ने मांसपिण्ड पर जल छिड़का, एवं उसे सौ भागों में विभक्त कर ...

कैलाश मानसरोवर और राम जन्मभूमि का रिश्ता

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वाल्मीकि रामायण के अनुसार कैलाश मानसरोवर और अयोध्या में क्या है रिश्ता? जानिए क्या है मानसरोवर झील और सरयू नदी की कहानी? रामायण में एक कथा आती है कि जब श्री राम विश्वामित्र जी के साथ ताड़का वध हेतु जा रहे थे तो रास्ते में गंगा नदी पड़ी। गंगा नदी पार करते समय श्रीराम को दो जलों के टकराने की आवाज आई| उस भयंकर ध्वनि को सुनकर श्रीराम को कौतूहल हो गया| उन्होंने उत्सुकतावश विश्वामित्र जी से पूछा कि, 'ऋषिवर, यह जलों के परस्पर टकराने की आवाज यहाँ क्यों आ रही है?'|   श्री राम का यह प्रश्न सुनकर ऋषि विश्वामित्र बोले, "हे राम! कैलाश पर्वत पर एक बहुत ही सुंदर सरोवर है। वह सरोवर ब्रह्मा जी ने अपने मानसिक संकल्प से प्रकट किया था। मन के द्वारा प्रकट होने के कारण उस सरोवर का नाम 'मानसरोवर' है। उस सरोवर से एक नदी निकलती है, जो अयोध्यापुरी से सटकर बहती है। ब्रह्मा जी द्वारा प्रकट होने के कारण मानसरोवर को 'ब्रह्मसर' भी कहा जाता है| 'ब्रह्मसर' से निकलने के कारण वह नदी ही 'सरयू' नाम से विख्यात है। उसी सरयू का जल यहाँ गंगा जी में मिल रहा है, दोनो...

प्रश्नोपनिषद के गुरु और शिष्य की अनकही बातें

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प्रश्नोपनिषद का प्रारम्भ इस प्रकार होता है कि सुकेशा, शिविकुमार, सत्यकाम, सौर्यायणि, कौसल्य, भार्गव और कबन्धी, यह ब्रह्मनिष्ठ ऋषि परब्रह्म की खोज करते हुए कि, "वह ब्रह्म क्या है?" इत्यादि जिज्ञासा लेकर उसकी खोज में आचार्य पिप्पलाद के पास हाथों में समिधा लेकर इस भावना से जाते हैं कि आचार्य भगवान हमें सब कुछ बतला देंगे। तब ऋषि पिप्पलाद ने अपनी शरण आए जिज्ञासु ऋषियों से कहा कि पहले से ही तपस्वी होने पर भी आप ब्रह्मचर्य, इन्द्रियसंयम, श्रद्धा, आस्तिकता तथा गुरुसेवा करते हुए एक वर्ष तक गुरुकुल में निवास करिए ततपश्चात आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विषय में प्रश्न करना, यदि मैं उस विषय को जानता हुआ तो आपकी पूछी सभी बात बतला दूंगा। इसके एक वर्ष बाद जिज्ञासु ऋषि आचार्य पिप्पलाद से प्रश्न करना शुरू करते हैं और प्रश्नोपनिषद का वास्तविक उद्घाटन होता है।             उपनिषद के आरम्भ की यह घटना यद्यपि छोटी है परंतु इसके अंदर भाव बड़ा गहरा है। सबसे पहले तो सभी जिज्ञासु ऋषि बताए गए हैं, प्रश्न उठता है ऋषि कोटि के व्यक्ति को भी जिज्ञासा? ब्रह्मनिष्ठ ऋषियों को ब्रह्म के विष...