क्या रावण ने सीताजी का स्पर्श नहीं किया था? बड़ा प्रश्न!


आजकल हिन्दुओं में बड़ी चतुराई से यह तथ्य फैलाया गया है कि रावण ने किसी स्त्री का स्पर्श नहीं किया था, उसमें वासना थी तो संयम भी था, आदि आदि जिससे रावण को चरित्रवान साबित किया जा सके और लोगों को श्रीराम से दूर करके राक्षस रावण के समीप ले जाया जा सके। पर क्या ये वास्तव में सत्य है कि रावण ने किसी परस्त्री का स्पर्श नहीं किया? सीताजी का स्पर्श नहीं किया? तो जवाब है कि यह पूरी तरह झूठ है!!

श्रीराम के जीवन का सबसे प्रमाणिक ग्रन्थ है वाल्मीकि रामायण जो कि श्रीराम के समकालीन ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित है, श्रीराम के जीवन पर यही सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। इसके बाद गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीरामचरितमानस व ऋषि कम्बन रचित तमिल ग्रन्थ कम्ब रामायण आती है। रामचरितमानस और कम्ब रामायण, दोनों के ही रचियताओं ने ग्रन्थ के शुरुआत में ही स्पष्ट रूप से कहा है कि हम यह ग्रन्थ वाल्मीकि रामायण के आधार पर लिख रहे हैं। इसलिए इन तीनों में भी संस्कृत का ग्रन्थ वाल्मीकि रामायण ही सबसे ज्यादा प्रमाणिक है।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण एक बहुत ही दुष्ट राक्षस था जो कि सभी अवगुणों की खान था, वह यज्ञों में मांस फिंकवाता था, ऋषियों की हत्याएं कराता था, स्त्रियों का बलात्कार जैसा जघन्यतम कर्म करता था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार वह कतई भी चरित्रवान नहीं था। जो लोग कहते हैं कि रावण ने सीताजी का स्पर्श तक नहीं किया था उन्होंने न तो रामायण का अध्ययन किया है न बुद्धि का उपयोग करते हैं। रावण ने परस्त्री को नहीं छुआ यह पूरी तरह गलत है, स्वयं रावण ने ही रामायण में इसका खण्डन किया है। देखिए वाल्मीकि रामायण से -

अरण्य कांड में अनेक श्लोकों में स्पष्ट वर्णन है कि माता सीता का अपहरण रावण ने काम के वशीभूत होकर किया था, कामवासना में अंधे होकर रावण ने माता सीता का अत्यंत अश्लील वर्णन किया जो मैं यहाँ नहीं रखना चाहता हूँ। माता सीता ने उस नीच को अनेक तरह से धिक्कारा-दुत्कारा और श्री राम के प्रताप और यश का वर्णन करके उसे डरा-धमकाकर दूर हट जाने को कहा। परन्तु उस दुष्ट ने माता को बड़ी ही निर्ममता से बालों से पकड़ा और अपने कुकर्मी हाथों से स्पर्श किया, तब माता सीता मर्माहत होकर घोर विलाप करने लगीं और दुःख से छटपटाती हुईं रावण को अनेक उलाहने देने लगीं। ऐसे पापात्मा को लोग महात्मा सिद्ध करने में बड़ी रूचि लेते हैं आजकल। यह पढ़िए आपका भी मन घृणा से न भर जाए तो..

इत्युक्त्वा मैथिलीं वाक्यं प्रियार्हां प्रियवादिनीम्।।
अभिगम्य सुदुष्टात्मा राक्षसः काममोहितः।
जग्राह रावणः सीतां बुधः खे रोहिणीम् इव।।
वामेन सीतां पद्माक्षीं मूर्धजेषु करेण सः।
ऊर्वोस्तु दक्षिणेनैव परिजग्राह पाणिना।।
- वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग 49, श्लोक 15-17
जो प्रियवचन सुनने के योग्य और सबसे प्रिय वचन बोलने वाली थीं, उन मिथिलेशकुमारी सीता से ऐसा अप्रिय वचन कहकर काम से मोहित हुए उस अत्यंत दुष्टात्मा राक्षस रावण ने निकट जाकर (माता के समान आदरणीया) सीता को पकड़ लिया, मानो बुद्ध ने आकाश में अपनी माता रोहिणी को पकड़ने का दुःसाहस किया हो। उसने बाएं हाथ से कमलनयनी सीता के केशों सहित मस्तक को पकड़ा तथा दाहिना हाथ उनकी दोनों जंघाओं के नीचे लगाकर उसके द्वारा उन्हें उठा लिया।

ततस्तां परुषैर्वाक्यैरभितर्ज्य महास्वनः।
प्रत्यदृश्यत हेमाङ्गो रावणस्य महारथः।।
- वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग 49, श्लोक 20
रथ के प्रकट होते ही जोर जोर से गर्जना करने वाले  रावण ने कठोर वचनों द्वारा विदेहनन्दिनी सीता को डांटा और पूर्वोक्त रूप से गोद में उठाकर तत्काल रथपर बिठा दिया।

देखिए रामायण में कितने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि रावण ने सीताजी को अपने हाथों से क्रूरतापूर्वक न केवल स्पर्श किया था बल्कि जंघाओं से उठाकर निर्लज्जता से उन्हें गोद में उठाकर अपहरण किया था। पुनः अगले श्लोक में देखिए कि लंका में प्रवेश करते समय भी दुष्ट रावण ने उन्हें अपनी गोद में उठा रखा था ताकि वे उनकी पकड़ से न छूट जाएं।




स तु सीतां विचेष्टन्तीमङ्केनादाय रावणः।
प्रविवेश पुरीं लङ्कां रुपिणीं मृत्युमात्मनः।। 
- वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग 54, श्लोक 11
सीता छटपटा रही। रावण ने अपनी साकार मृत्यु की भाँती उन्हें अंक में लेकर लंकापुरी में प्रवेश किया।

यह श्लोक और अर्थ हमने गीताप्रेस से दो खंडों में प्रकाशित अर्थ सहित श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण से लिए हैं। प्रमाणों से स्पष्ट है कि रावण एक बेहद चरित्रहीन, स्त्रियों का शत्रु था। स्त्रियों का अपहरण करने वाला, उन्हें अपमानित, और उनपर अत्याचार करने वाला दुष्ट था व अपने काम के वशीभूत होकर उसने सीताजी का न सिर्फ स्पर्श किया था बल्कि जोर जबरदस्ती करके उन्हें बलात अपहृत किया था। अब यदि कोई कहे कि रावण ने परस्त्री को नहीं छुआ तो उसे यह पोस्ट दिखाकर करारा जवाब दें और झूठ फैलने से रोकें। जय श्री राम।

- मुदित मित्तल 

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